केंद्र सरकार ने हाल ही में यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) की घोषणा की है, जो 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी। इस नई योजना को नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) का विकल्प बताया जा रहा है। सरकार का दावा है कि UPS से सरकारी कर्मचारियों को ज्यादा फायदा होगा। लेकिन कुछ विशेषज्ञों और विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह NPS से भी बड़ा धोखा है और सरकार को पुरानी पेंशन योजना (OPS) को ही लागू करना चाहिए।
इस लेख में हम UPS, NPS और OPS की तुलना करेंगे और देखेंगे कि क्या वाकई UPS कर्मचारियों के लिए फायदेमंद है या फिर यह एक और झांसा है। साथ ही यह भी जानेंगे कि क्या OPS को फिर से लागू करना संभव और उचित है।
यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) क्या है?
यूनिफाइड पेंशन स्कीम केंद्र सरकार की एक नई पेंशन योजना है जो 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी। इसका मुख्य उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित और गारंटीड पेंशन प्रदान करना है।
UPS की मुख्य विशेषताएं:
विशेषता | विवरण |
पात्रता | 1 जनवरी 2004 के बाद नियुक्त केंद्र सरकार के कर्मचारी |
न्यूनतम सेवा अवधि | 10 साल |
पेंशन राशि | आखिरी 12 महीने की औसत सैलरी का 50% |
न्यूनतम पेंशन | 10,000 रुपये प्रति माह |
फैमिली पेंशन | कर्मचारी की पेंशन का 60% |
सरकार का योगदान | बेसिक सैलरी का 18.5% |
कर्मचारी का योगदान | बेसिक सैलरी का 10% |
महंगाई राहत | हां |
एकमुश्त राशि | हर 6 महीने की सेवा पर आखिरी सैलरी का 10% |
UPS बनाम NPS: क्या है अंतर?
यूनिफाइड पेंशन स्कीम को नेशनल पेंशन सिस्टम का विकल्प बताया जा रहा है। आइए दोनों योजनाओं की तुलना करें:
- पेंशन की गारंटी: UPS में एक निश्चित पेंशन की गारंटी है, जबकि NPS में पेंशन बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करती है।
- सरकार का योगदान: UPS में सरकार 18.5% योगदान देगी, जबकि NPS में यह 14% है।
- न्यूनतम पेंशन: UPS में 10,000 रुपये की न्यूनतम पेंशन गारंटी है, NPS में ऐसी कोई गारंटी नहीं है।
- फैमिली पेंशन: UPS में स्पष्ट फैमिली पेंशन का प्रावधान है, NPS में यह अस्पष्ट है।
- महंगाई राहत: UPS में महंगाई राहत का प्रावधान है, NPS में नहीं।
क्या UPS वाकई NPS से बेहतर है?
यूनिफाइड पेंशन स्कीम कई मायनों में NPS से बेहतर लगती है। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह भी एक तरह का धोखा हो सकता है:
- लंबी अवधि में कम लाभ: NPS में निवेश से लंबी अवधि में ज्यादा रिटर्न मिल सकता है।
- सरकार पर बोझ: UPS से सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा जो अंततः करदाताओं पर पड़ेगा।
- मुद्रास्फीति का खतरा: निश्चित पेंशन भविष्य में मुद्रास्फीति के कारण कम पड़ सकती है।
- युवा कर्मचारियों के लिए कम फायदेमंद: नए भर्ती होने वाले युवा कर्मचारियों के लिए NPS ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।
क्या ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) लौटनी चाहिए?
कई राजनीतिक दल और कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने की मांग कर रहे हैं। OPS की मुख्य विशेषताएं थीं:
- आखिरी सैलरी का 50% पेंशन
- कोई कर्मचारी योगदान नहीं
- पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्त पोषित
- महंगाई राहत का प्रावधान
OPS के पक्ष में तर्क:
- कर्मचारियों को ज्यादा सुरक्षा और निश्चितता
- रिटायरमेंट के बाद बेहतर जीवन स्तर
- सरकारी नौकरी की आकर्षकता बढ़ेगी
OPS के विरोध में तर्क:
- सरकार पर भारी वित्तीय बोझ
- युवा पीढ़ी पर अनुचित बोझ
- अन्य क्षेत्रों के लिए कम संसाधन
UPS, NPS और OPS की तुलना
विशेषता | UPS | NPS | OPS |
पेंशन गारंटी | हां | नहीं | हां |
कर्मचारी योगदान | 10% | 10% | नहीं |
सरकार योगदान | 18.5% | 14% | 100% |
न्यूनतम पेंशन | 10,000 रु. | नहीं | नहीं |
महंगाई राहत | हां | नहीं | हां |
बाजार जोखिम | नहीं | हां | नहीं |
सरकार पर बोझ | मध्यम | कम | उच्च |
क्या करना चाहिए सरकार को?
सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है। उसे ऐसी पेंशन योजना लानी होगी जो:
- कर्मचारियों को पर्याप्त सुरक्षा दे
- सरकार पर अत्यधिक वित्तीय बोझ न डाले
- युवा पीढ़ी पर अनुचित बोझ न डाले
- देश की अर्थव्यवस्था के लिए टिकाऊ हो
इसके लिए कुछ सुझाव हैं:
- UPS और NPS का मिश्रण
- न्यूनतम गारंटीड पेंशन के साथ बाजार-आधारित रिटर्न
- कर्मचारियों को विकल्प देना
- पेंशन फंड का बेहतर प्रबंधन
- निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना
निष्कर्ष
यूनिफाइड पेंशन स्कीम NPS की कुछ कमियों को दूर करने का प्रयास है। लेकिन यह भी पूरी तरह से समस्या का समाधान नहीं है। सरकार को एक ऐसी संतुलित पेंशन नीति बनानी होगी जो कर्मचारियों और देश दोनों के हित में हो। OPS की वापसी संभव नहीं लगती, लेकिन UPS में भी सुधार की गुंजाइश है।
Disclaimer:
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्य से है। यूनिफाइड पेंशन स्कीम अभी प्रस्तावित अवस्था में है और इसमें बदलाव हो सकते हैं। कोई भी वित्तीय निर्णय लेने से पहले विशेषज्ञों की सलाह लें। OPS की वापसी की मांग राजनीतिक और आर्थिक दोनों कारणों से विवादास्पद है। अंतिम निर्णय सरकार और नीति निर्माताओं पर निर्भर करेगा।